.
देह-अहंकार
रावण-राज्य
तमोगुणी- वातावरण
विकारों के प्रभाव
सच
झूठ
तुम बैकुण्ठ के मालिक बन सकते हो, अगर ज्ञान-योग सीखेंगे तो।
यह चक्र फिरता रहेगा,यह बना- बनाया ड्रामा है I जैसे मच्छर उड़ा, तो कल्प बाद भी उड़ेगा।
बाप का बना और वर्सा तुम्हारा,मगर तुमको बाप की याद से पावन जरूर बनना है I
सवेरे उठकर अपने से बातें करनी हैं कि हम अशरीरी आये, अशरीरी जाना है। फिर देहधारियों को याद क्यों न करें।
बाप को याद करने की आदत पड़ जायेगी, तो खुशी में बैठे रहेंगे और शरीर का भान टूटता जायेगा।
सच
झूठ
सवेरे अमृतवेले उठकर बाप से मीठी-मीठी बातें करनी है।
अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
चिन्ता नहीं करो यदि बाप की याद के सिवाए दूसरा कुछ भी याद आये।
अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध पवित्र बनानी है।
फूल बनने का पूरा पुरूषार्थ करना है। कांटा नहीं बनना है।
सच
झूठ
यह मरजीवा दिव्य जन्म कर्मबन्धनी जन्म नहीं, यह कर्मयोगी जन्म है।
इस अलौकिक दिव्य जन्म में ब्राह्मण आत्मा परतन्त्र है न कि स्वतन्त्र।
यह देह लोन में मिली हुई है, सारे विश्व की सेवा के लिए I
पुराने शरीरों में बाप शक्ति भरकर चला रहे हैं, जिम्मेवारी बाप की है, न कि आप की।
चलाने वाला चला रहा है। इसी विशेष धारणा से कर्मबन्धनों को समाप्त कर कर्मयोगी बनो।
बेहद की वैराग्य वृत्ति,
बापसमान बनना
कर्मातीत स्थिति
पवित्रता