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ओम् नमो शिवाए....
किसने यह सब खेल रचाया....
जले न क्यों परवाना
लव एंड लॉ
बालक और मालिकपन
स्वीट एंड स्ट्रिक्ट
समर्थ आत्मा भव
पास विद आनर भव
ज्ञानीतू आत्मा भव
जैसे आकाश में तारा टूटता है तो सारा सफेद हो जाता है, वैसे आत्मा भी बिन्दी है।
आत्मा का भी साक्षात्कार होता है।
आकर इतने बड़े शरीर में प्रवेश करती है फिर कितना काम करती है।
एक शरीर छोड़ दूसरा शरीर ले पार्ट बजाते हैं फिर उसमें रोने की कोई दरकार ही नहीं है।
ड्रामा को जानें तब ऐसे कहें, अब तुमको यह ज्ञान है कि हम यह पुराना शरीर छोड़ अपने निर्वाणधाम में जायेंगे।
सही
गलत
बाबा में खो जाना
बाप की नज़र को देखना
अर्थात् स्वर्ग का मालिक बनना
जो व्यर्थ से मुक्त है
जिनकी बुद्धि में एम आब्जेक्ट क्लीयर है।
शरीर से भी बुद्धियोग निकालना पड़े।
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना